तुम सजना परदेश
तुम सजना परदेश
कहो मन कैसे मनाये
शाख कोयलिया
कूक रही है
मन्द पवन फिर
मूक बही है
लता बदन किस ओट लगाये
तुम सजना परदेश
कहो मन कैसे मनाये
सावन बरसे,
तपता है मन
काला बादल
बन गया दुश्मन
बिरहा अग्नि बन झुलसाये
तुम सजना परदेश
कहो मन कैसे मनाये
चली सहेली
गली पिया की
मैं अकेली
जलूँ दिया-सी
याद तुम्हारी रह रह आये
तुम सजना परदेश
कहो मन कैसे मनाये
देवे न कागा
कोई इशारा
मुझ दुखिया का,
कौन सहारा
पल बरसों सा होता जाये
तुम सजना परदेश
कहो मन कैसे मनाये|
✍हेमा तिवारी भट्ट✍