तुम संग प्रीत है लगाई
** तुम संग प्रीत हैं लगाई **
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तुम संग प्रीत हमने है लगाई
जान खुद से हो गई है पराई
चाहे दिल में बजे नेह शहनाई
चाहे मिले हमें जालिम तन्हाई
मैंने कान्हां बन बाँसुरी बजाई
तुम राधा बन जैसे हो शर्माई
खुदा ने प्रेम लीला ऐसी बनाई
कभी संयोग तो कभी जुदाई
तुम मेरी बन गई हो परछाईं
जग से हो तेरी बाँहों में विदाई
कभी प्रीत बने न यूँ जग हंसाई
प्रेम पाखी बन उड़ान है लगाई
लाल लहू जैसी मेंहदी है रचाई
जब से तुम संग है लगन लगाई
बढ़ी बैचेनी हुआ चैन हवाहवाई
तुम संग चलो बन मेरी परछाई
क्यों हो फूल जैसै तुम कुमलाहीं
भँवरा बन के करूँ मैं रस चुसाई
जब से आगोश में हो तुम आई
अथाह समुद्र सी प्रेम की गहराई
नशीली नजर से नजर है मिलाई
तुम हो जैसे दुग्ध में जमी मलाई
आओ दो,हाथों में हाथ पकड़ाई
श्वेत मोती सी चमक मुख पै आई
प्रेम की पींगे ऊँची ऊँची है लाई
मिले आसमानी स्नेह की ऊँचाई
मनसीरत मन बांवरा बना हरजाई
आँखें हुई नम,जैसे हों रुली रुलाई
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)