तुम लगी घाव पर मरहम सी..
मेरे सुख दुख से परिचित सी एक गूढ़ नियंता बन बैठी,
तुम लगी घाव पर मरहम सी, दिल की अभियंता बन बैठी
जो गयी ठेलकर मुझको कल, जिस भीड़ से मैं भयभीत हुआ
तुम एक अकेली होकर भी, परवाही जनता बन बैठी..
– नीरज चौहान
मेरे सुख दुख से परिचित सी एक गूढ़ नियंता बन बैठी,
तुम लगी घाव पर मरहम सी, दिल की अभियंता बन बैठी
जो गयी ठेलकर मुझको कल, जिस भीड़ से मैं भयभीत हुआ
तुम एक अकेली होकर भी, परवाही जनता बन बैठी..
– नीरज चौहान