तुम रूबरू भी
तुम रूबरू भी
न हो तो क्या
तसव्वुर
में बना लेता हूँ
आँखे तुम्हारी
और, नशा उनका
ढाल कर लफ्जों में
गज़ल बना लेता हूँ मैं
हिमांशु Kulshrestha
तुम रूबरू भी
न हो तो क्या
तसव्वुर
में बना लेता हूँ
आँखे तुम्हारी
और, नशा उनका
ढाल कर लफ्जों में
गज़ल बना लेता हूँ मैं
हिमांशु Kulshrestha