तुम रंगरेज..
तुमने कितने ही रंग बनाऐ,
उन रंगो को जीवन मे लाऐ…
विविध विविध सब रंग छंद हैं,
कुछ धानी कुछ पर बसंत है…
रंगो के एक तुम ही माहिर,
तेरी ही कूँची सब पर जाहिर…
फिर छूटा क्यों मैं ही बेरंग,
मुझ पर भी भर दो न रंग…
‘कर’ लिये रंग करता हूँ टेर,
अब मुझको रंग दो रंगरेज…
बस थोड़ा रंग दो रंगरेज,
थोड़ा ही रंग दो रंगरेज….
©विवेक’वारिद’*