” तुम मेरे साथ हो “
कविता -09
उगता – ढलता हुआ सूरज के बिखरते रंग को हर
रोज़ देखने मे तुम मेरे साथ हो ,
छत की मुंडेर मे बैठ कर चाँद तारो को चमकते
देखने मे तुम मेरे साथ हो ,
हर सुबह बिखरी जुल्फों को संवारते हुए
तुम्हें देखने मे तुम मेरे साथ हो ,
तुम मैं एक ही थाली में खाने मे हर रोज़
तुम मेरे साथ हो ,
तुम आगे मैं पीछे रहूँ और तेरे लफ्जों की
खुशबू मेरे कानों तक आने मे तुम मेरे साथ हो ,
चलती राह मे कोई फूल तोड़ कर इश्क़ का
इजहार करने में तुम मेरे साथ हो ,
ठहरे हुए पानी के किनारे पे मेरे संग तेरी
भी परछाई मे तुम मेरे साथ हो ,
दूर किसी जगह पे आँखों में डूब कर तेरी ही
आँखों से दुनिया देखने में तुम मेरे साथ हो ,