तुम मेरा इतिहास पढ़ो
तुम मेरा इतिहास पढ़ो
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तुम मेरा इतिहास नहीं जानते।
मेरे वर्तमान से नफरत करते हो।
जब मैं राजा था, मैं सबका राजा था।
मेरा शासन बराबरी का शासन था।
उत्कृष्ट कथनों का अक्षरशः पालन था।
तुम्हें समान शरण व संरक्षण दिया।
तुम्हें समान अवसर व प्रशिक्षण दिया।
तुम आये थे मैं यहीं उपजा, पला था।
यहीं की कोख से हितवादी उपदेशों को
अंकुरते पल्लवित,पुष्पित,फलित होते देखा था।
सत्य को,अहिंसा को,समता को परम होते देखा था।
राजा और राजाज्ञाओं को करम होते देखा था।
हमने तुम्हें भाषा दिया अपनी संस्कृति दी।
खानाबदोशी से निकाला अच्छी प्रवृत्ति दी।
मैं उलाहना नहीं दूँगा।
किन्तु, सराहना नहीं करूँगा।
पर,कुछ तो कहूँगा।
तन और मन पर तेरे विश्वासघात का
बड़ा बोझ है
पटक कर अब पुनः राजा बनूँगा।
असत्य और हिंसा प्रकृति है तुम्हारी।
तुम्हारा जीवन दुष्कृति है तुम्हारी।
श्राप और वरदान का खेल खूब खेला।
अब और नहीं
बहुत लगाये हमारे मठ-मन्दिरों में मेला।
कहना बाकी रहेगा।
भविष्य साक्षी रहेगा।
—————————————–21-10-24