तुम मिले भी तो, ऐसे मक़ाम पे मिले,
तुम मिले भी तो, ऐसे मक़ाम पे मिले,
जब रास्ते तय हो चुके थे, अपने-अपने।
सिर्फ़ हक़ीक़त पे ज़िंदगी चलती कहाँ है,
दिलो-दिमाग को चाहिए, बेक़रार सपने।
जब रास्ते बंद अबूझ हों, दिल उदास हो,
तुम्हारे बारे बुनने लगता हूँ हसीन सपने।
उम्र से लंबी कई क़तारें ख़्वाहिशों की,
और पहली क़तार में, सिर्फ़ तुम्हारे सपने।
नज़दीकियों के मायने, दूर हुए रिश्तों से,
मैं हूँ, मेरी तन्हाईयां हैं और हजार सपने।