तुम महकती क्यों नहीं हो रात रानी धूप में
तुम महकती क्यों नहीं हो रात रानी धूप में
क्या तुम्हें भाती नहीं है जिंदगानी धूप में
यौवना सी खिलती है जब ओढ़ती ये चाँदनी
रात पे आती नहीं है ये जवानी धूप में
सपनों की दुनिया सजाती रात में आराम कर
ज़िन्दगी पर काम की लिखती कहानी धूप में
कँपकपाता और डराता घिर के ये कोहरा घना
पर यही हो जाता बिल्कुल पानी पानी धूप में
कर दिया है छेद नभ में इस प्रदूषण ने बड़ा
खतरे में है आज सबकी जिंदगानी धूप में
‘अर्चना’ घिरते हैं बादल तो बरसते हैं जरूर
पड़ती है इनको भी लेकिन मात खानी धूप में
23-11-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद