!!तुम भी अकेले थे, मैं भी अकेली थी !!
रात भी अकेली थी,
और संग चाँद भी अकेला था
इस सूनसान के आलम में
यह दिल भी तो अकेला था…..
तेरे बिना, हम न जाने कहाँ खो गए
वो सोते तो नहीं थे, आज जाने कैसे सो गए..
साँसे भी अकेली थी और ये दिल भी अकेला था
उन की चाह में उस वक्त हम खो गए ……
अश्क भी उनको याद कर रहे,
साँसे भी इन्तेजार कर रही
आरजू भी अकेली, धक् धक् धड़क रही
आना था उनको, यह हर सांस कह रही…
प्यार की यह रात,महबूब से थी दूर
मन की तड़प कुछ कुछ हो रही कमजोर
शामिल जब किया था दिल में हमें
तो क्यूं नहीं अब आ रहा उनका सरूर…..
वफ्फा करते करते न जाने क्यूं
नींद का आलम सा छाने लगा
वो भी कह रही थी, तुम ही नहीं
मैं भी अकेली थी और मेरा दिल भी अकेला था !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ