तुम बग़ैर
हमें बेचैन करके यूँ ,तुम्हें चैन अग़र आ जाए
शब-ए-फुरक़त में भी हमें चाँद नज़र आ जाए
ये उदासियों से लिपटा चेहरा क्या चाहता है
तुम ख्यालों में ही आ जाओ तो असर आ जाए
हमारी परछाई हमसे ही रूठी है,देखो आजकल
तुम हँस दो ज़रा ज़ोर से तो पल में सहर आ जाए
तुम बग़ैर ख़ाली ख़ाली सी है ,ये ज़िन्दगी हमारी
आके भर दो फ़िर से, शायद हमें क़दर आ जाए
खुशियाँ भागी भागी सी फ़िरती है,इधर नहीं आती
तुम चाहो अग़र तो सारी ख़ुशी हमारे दर आ जाए
इश्क़ नहीं तो रफ़ाक़त सही, थोड़ी सी चाहत सही
ग़ुम हो गए हैं, तुम उंगली पकड़ लो तो घर आ जाए
___अजय “अग्यार