तुम बिन रीता
चुपके- चुपके से तुम आती हो, फिर भी तुम बिन रीता
सपनों को मनकों में पिरो जाती, फिर भी तुम बिन रीता
नजरों में तुम बसती हो, ये मेरा विश्वास है या है भम्र
तुम संग हर लम्हा पाती, फिर भी तुम बिन रीता
फिर लौट चलों उन हंसीन वादियों में जहाँ जीया हर सपना
मोहब्बत की बुनती बुनकर लाती, फिर भी तुम बिन रीता
हर लम्हे में महकी बगियाँ, फूलों की क्यारियाँ हैं सजी
तुम हो तो ये बेला मखमली है, फिर भी तुम बिन रीता
ख्यालों को ख्वाबों में, तुमको ही ढूढती हूँ हर इक सपना
मदहोशी के आलम में आती, फिर भी तुम बिन रीता
पत्तों की खडक में भी लगता है, तुम ही तो…….
यादों की चादर तान सोती, फिर भी तुम बिन रीता
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़, हरियाणा