तुम बिन कब तक रहूँ अधूरी
जब से गये हो तुम मेरे सजना
याद नहीं दिन रात महीना
दिन सूना है, रात है सूनी
दिल की हर एक बात है सूनी
बिंदियाँ रूठी, रूठे कंगना
भूल गई अब सजना-संवरना
नैना तेरे दरस को तरसे
आँखे मेरी हरदम बरसे
आकर मेरी प्यास बुझा दो
मिलने की कुछ आस बंधा दो
आ भी जाओ अब तो सजना
मुश्किल हो गया तुम बिन जीना
अब न सही जाये ये दूरी
तुम बिन कब तक रहूँ अधूरी
तुम बिन कब तक रहूँ अधूरी????
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लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
भोपाल
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