तुम पतझड़ सावन पिया,
तुम पतझड़ सावन पिया, तुम ही हो मधुमास।
बूँद स्वाति नक्षत्र की,तुम्हीं हृदय की प्यास।।
तुम हो मन की केतकी,चंपा तुम्हीं पलास।
रिक्त हृदय के कुंज में,प्रथम प्रेम आभास।।
प्रेम अगन मन की चुभन,तुम्हीं हास-परिहास।
तुम से ही जीवन सजा,अंतस में उल्लास।।
सूर्य किरण की तुम प्रखर,उज्ज्वल धवल प्रकाश।
चाँद सितारों से सजा,हो मेरा आकाश।।
तुम से ही उम्मीद है,सिर्फ तुम्हीं से आस।
खुद से भी ज्यादा मुझे,है तुम पर विस्वास।।
तुम्हीं काव्य की कल्पना,तुम अनुभव अहसास।
अलंकार हो काव्य की,तुम्हीं वर्ण विन्यास।।
दिल धड़कन उर आत्मा,प्राण प्रणय तन श्वास ।
मन प्रांगण का देव तुम,रोम रोम में वास।
तुम जीवन की पूर्ति हो,प्रेम मूर्ति अरदास।
लब्ज़ो में कैसे कहूँ, तुम हो कितने खास।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली