तुम ने पढ़ा ही नही
तुम ने पढ़ा ही नही
आँखों को मेरी
कितनी ख्वाहिशें,
करवट बदल रही थी
कुछ ख़ुश्क सी
कुछ शुष्क सी
मुश्क सी, इश्क की
हजार आयतें लिख डाली थी
दिल की दीवार पे
फिर झंझोड़ कर तुमने कहा
किसी को इतना न बसाओ
दिल के तहखाने में
किसी को खुद में बसाना
अच्छा नही होता, दिल रोता है
दिल काठ का नही होता…
…सिद्धार्थ