तुम नहीं जी सकोगी हमारे बिना…
बात किस से करोगी हमारे बिना..??
तुम नहीं जी सकोगी हमारे बिना।
चाँद तारे भी फीके लगेंगे तुम्हें,
किसकी ख़ातिर सजोगी हमारे बिना..??
ख़्वाब देखे हैं जो साथ मिलकर उन्हें,
कैसे पूरे करोगी हमारे बिना…?
रुख़ हवा का न जाने मुड़े किस तरफ,
किस दिशा में बहोगी हमारे बिना..??
कसमें जीने की औ’ साथ मरने की थीं,
दो क़दम चल सकोगी हमारे बिना..?
बेख़बर तुम मग़र सब ख़बर है हमें,
रोओ’गी या हँसोगी हमारे बिना।
यूँ अगर तुम खफ़ा ही रहीं सोच लो,
करवटों से मिलोगी हमारे बिना।
सिसकियाँ, हिचकियाँ और सरगोशियां,
कैसे जिंदा रहोगी हमारे बिना..??
बेअसर हैं अभी लफ्ज़ मेरे मग़र,
गीत ग़ज़लें पढ़ोगी हमारे बिना।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊️