तुम नहीं आए…
तुम नहीं आए…
फागुन आया ले
रंगों की टोकरी
पर तुम नहीं आए।
ऋतु वासंती झूम रही है।
बागों में कोयल कूक रही है।
मन मयूर नाच रहा है
नई – नई आस बँधी है
पर तुम नहीं आए।
फैले नभ में घटा फागुनी
मदमस्त होकर झूम रही है।
देख – देख मचलता मेरा मन
रंगों की ढ़ेरी देख देख
मन व्याकुल रहता हर पल
पर तुम नहीं आए।
किरण बासंती छेड़ रही है
धरती घूँघट खेल रही है
नस-नस में मस्ती है छाई
पुरवाई फिर से बहराई
पर तुम नहीं आए।
मीरा ठाकुर