तुम धूप छांव मेरे हिस्से की
मेरे हिस्से की धूप तुम्हीं
मेरे हिस्से की छांव भी ।
किन्तु मेरे इस हिस्से पर
क्यों जग खेले दांव ही ?
कब से तेरी राह तकी है
तब जा तुमको पाया है ।
तुमको ही पाकर मैंने
मेरा सब दुःख बिसराया है ।
किन्तु जरा न जग को भाया
जो तू मेरे ठांव ही ।
मेरे हिस्से…….
इस तन की हो प्राण वायु सा
मन का तुम ही आरव हो ।
अन्त समय जो हर मुख चाहे
तुम वो मेरा गंगाजल हो ।
थक कर चूर हुए तब पाई
मन ने मन की ठांव भी ।
मेरे हिस्से………….
माना नहीं जना तुमको
पर भावों से आधार गढ़ा ।
ममता तुम पर सर्वस्व वार
तुममें अपना संसार गढ़ा ।
सदा तुम्हारे संग रहूंगी
रहो किसी भी ठांव भी ।
इस पंथी का पथ भी तुम हो
तुम ही मेरा गांव भी ।
मेरे हिस्से ………