तुम देख लो अभी मुझे होशो-हबास है
ग़ज़ल
तुम देख लो अभी मुझे होशो-हबास है।
फिर कैसे मान लूं कि बुझी मेरी प्यास है।।
मुझ पर भी कुछ निगाह-ए-इनायत हो साक़िया।
होठों पे तिश्नगी है ये ख़ाली गिलास है।।
महकी हुई हवाए है ख़ुशबू से हर तरफ।
लगता है तू यहीं मेरे ही आसपास है।।
मेरा बदन तो एक ही पल में सुलग उठा।
है आग तेरी याद मेरा दिल कपास है ।।
जीने को जी रहा हूँ मैं तेरे बगै़र भी।
आँखें भी मुन्तज़िर हैं ये दिल भी उदास है।।
गंदा सही “अनीस ” ढकी मेरी आबरू।
लोगों के जिस्म पर तो ये उरिया लिबास है।।
– अनीस शाह “अनीस”