“तुम थे ना कभी वादों में मेरे”
“तुम थे ना कभी वादों में मेरे
ना ही थे कभी इरादों में
क्यों आया दिल सहसा तुमपे
चंद मीठी मीठी बातों में ,
क्यूँ जीना बनता है गद्दारी
बिन साथ तुम्हारा ग़र देखूँ तो
हर लम्हा जरुरी हो जाता है
जब हसके तुम अपना कहती हो ,
क्यूँ ख्वाबों के तरंग नए
दिल में उठने लगते है
हर याद में होती हो मेरे
फिर भी दूर बहुत ही लगते हो ,
हर अफ़साने गाली लगते है
बिन तुमको ग़र मै सोचूं तो
हर हर्फ़ सवाली होते है
बिन तेरे ग़र मै जीउ तो ||”