तुम तो हमेशा से बेकसूर थे
गलती मेरी ही थी,
तुम तो हमेशा से बेकसूर थे।
बिना पूछे सपने मैने बुने,
तुम्हारे होठों पर गीत अपने मैने सुने।
तुम्हारे आने से चमक उठी थी आँखें,
जबकि तुम किसी और की आंखों के नूर थे।
गलती मेरी ही थी,
तुम तो हमेशा से बेकसूर थे।
बंजर सी थी ये जमीं मेरी,
ना जाने ये कैसी कमी मेरी?
सींचा,संवारा,सजाया था तुमने,
जमीं पर ये जन्नत बनाया था तुमने।
आज जब ये आंखें खुली तो ये जाना,
स्वप्न एक झूठा था,
वास्तविकता में तो तुम कोसों दूर थे।
गलती मेरी ही थी,
तुम तो हमेशा से बेकसूर थे।