तुम झूंठे हो
कलम घिसाई।
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तुम झूंठे हो तुम पागल हो जो छाता लाये साथ में।
मुझसे क्यों बोला था बोलो भीगेंगे बरसात में।
मै पागल थी भीग गई आकंठ प्यार में तेरे रे।
तू निकला एक चालू पुर्जा मै आ गई तेरी बात में।
मरती हो री पागल तुम तो एक जरा से पानी में।
ज्यादा बन मत रे मोटी तू क्या भीगेगी साथ में।
अरे छोड़ बातो को यारा बोले तो दरिया कूदू।
शर्त यही बस एक है प्रीतम हाथ तेरा हो हाथ में।
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मधुसुदन गौतम