तुम जो मिल गई हो।
तुम जो मिल गई हो तमन्ना ना कोई बची है।
वरना अब तक तो जिन्दगी सजा में कटी है।।1।।
परिंदों सा था भटकता रहता था यूँ जहाँ में।
अब समझ में आया तुम्हारी ही कमी रही है।।2।।
वजूद भी खत्म हो रहा था अपने लोगों में।
आ जानें से तेरे थोड़ी छीटा-कशी भी हुई है।।3।।
हर शू ही खिजा थी गुलो में आने से पहले।
बहार भी अब खिली खिली सी लग रही है।।4।।
गम के मारे थे और जिंदगी में तुम आ गए।
देखो प्यासे सहरा में जैसे बारिश सी हुई है।।5।।
अब क्या मांगे खुदा से तू जो मिल गया है।
क्या गम,आ जाए गर कयामत की घड़ी है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ