तुम जलधर मैं मीन…
तुम जलधर मैं मीन…
तुम बिन कैसे धारूँ जीवन,
तुम जलधर मैं मीन।
प्राण जिएँ ये देख तुम्हें ही,
रहें तुम्हीं में लीन।
चाँद न आए नजर अगर तो,
कैसे जिए चकोर ?
साँझ ढले से इकटक नभ में,
देखे राह अगोर।
उसके ही स्वप्नों में खोयी,
रहे सदा तल्लीन।
स्वाति नखत के मेघ साँवरे,
करो कृपा की कोर।
अनथक ताक रही मैं प्यासी,
कबसे तेरी ओर।
पीर पराई देख हँसें सब,
करता कौन यकीन ?
अथक ललक दरसन की तेरे,
और मुझे क्या काम।
राह बुहारूँ पंथ निहारूँ,
जपूँ निरंतर नाम।
रखती बेर मधुर चख मीठे,
शबरी -सी मैं दीन।
चैन नहीं इक पल जीवन में,
जकड़ें नित नव रोग।
करते हैं उपहास अबल का,
ताकत वाले लोग।
हालत मेरी छुपी न तुमसे,
भाँति-भाँति से हीन।
अंत भले का भला न होता,
मिले झूठ को जीत।
कैसे कोई सहे कहो तो,
दुःसह जगत की रीत।
भाग्य छली ले जाता तिस पर,
कनियाँ सुख की बीन।
सुख-दुख जो भी मिलें यहाँ, सब
किस्मत के आधीन।
तुम जलधर मैं मीन…
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )
‘भाव अरुणोदय’ से