तुम छत पे बुला लेना
इस बार सलीके से दीवाली मना लेना
इक दीप मुहब्ब़त का दिल में भी जला लेना
जब दीपों की लड़ियाँ तारों सी दिखें झिलमिल
चंदा को इशारे से तुम छत पे बुला लेना
यादों के गुलशन से हर रंग चुराकर के
तनहाई सताए तो रंगोली बना लेना
आँधी में उदासी की जब तेज हवाएँ हों
उम्मीद के दीपक को बुझने से बचा लेना
चाहत के पटाखों से गूँजे जो फिजाँ ‘संजय’
तुम भी वो हया वाली फुलझड़ियाँ छुड़ा लेना