तुम गैर कबसे हो गए ?…
तुम इतने गैर कब से हो गए ,
की हम तुम्हें दुश्मन से लगने लगे
तुम में धार्मिक कट्टरता कब से आई ,
की खुद के धर्म को ही श्रेष्ठ समझने लगे ।
हमने तो कभी तुम्हारे खुदा को बुरा न कहा ,
और तुम हमारे आराध्यों का अपमान करने लगे!
हम सभी ने मिलकर आजादी की जंग लड़ी,
और आज तुम गैरों से मिलकर बैगाने लगने लगे ।
हमने सभी त्योहार ईद या दिवाली इकठ्ठे मनाए,
आज तुम्हें अपनी सेंवई मीठी और हमारे लड्डू कड़वे लगे।
यह हमारा देश धर्म निरपेक्षता की मिसाल था,
और तुम उसी एकता के दिए को बुझाने लगे ।
तुम जो कहो या करो सब सही और हम गलत ,
तुम तो अब घृष्टता की सीमा लांघने लगे ।
खुदा खुदा करते हो मगर खुदा की एक नहीं मानते,
तुम तो अपने ही खुदा का असल संदेश नकारने लगे।
सबका मालिक एक है खुदा कहो या भगवान ,
मगर तुम तो उस खुदा को ही बांटने लगे ।
स्वर्ग सी धरती दी थी उसने हमें मिलकत रहने को ,
मगर तुम इस पर अपना ही हक जताने लगे ।
यह स्वार्थी नेता तमाशा देखते है हमें लडवा कर ,
तुम मूर्ख उनकी बातों को सच मानने लगे ।
अब छोड़ो यह हिंसा ,नफरत और बंटवारे की बात ,
तुम्हारे इस व्यवहार से भारत मां के जख्म हरे होने लगे ।
खून किसी का भी बहे ,हमारा या तुम्हारा,
हैं तो हम एक उसी की संतान ,लौट आओ !
तुम क्यों इस तरह भटकने लगे ।