तुम क्रोध नहीं करते
तुम क्रोध नहीं करते
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तुम मरने से नहीं डरते।
पर,तुम क्रोध नहीं करते।
तुम जँगल में कन्द,मूल,फल तलाशते।
मरने में गौरव महसूस करते।
पर,तुम क्रोध नहीं करते।
तुम गालियाँ सुनकर अत्यन्त दुःखित
जमीन से फट जाने की कामना करते।
आँखें नीची कर मन-मन रोते, सुनते ।
पर,तुम क्रोध नहीं करते।
तुम विष तुल्य व्यवहार निरीह हो झेलते।
तुम्हारी औरतों पर मानसिक,शारीरिक बलात्कार
स्वयं पर होते मान मर्दन रहते झेलते।
पर,तुम क्रोध नहीं करते।
तुम दिन-रात खटते हो।
मजूरी माँगकर लाठियाँ खाते।
पर, तुम क्रोध नहीं करते।
तुम्हारा विरोध छिन्न-भिन्न।
तुम्हारा आत्मसम्मान भग्न।
तुम पददलित,वंचित,अपमानित।
पर,तुम क्रोध नहीं करते।
तुम्हें पढ़ने से रोका।
स्वाध्याय से अर्जित ज्ञान था
दक्षिणा कह कर ज्ञान छीना।
काट अँगूठा लिया।
पर,तुम क्रोध नहीं करते।
तुम सन्यासी नहीं थे।
वेदवादी नहीं थे।
फिर तुम क्रोध क्यों नहीं करते।
तुम मृत्यु से डरे,जीवन भर मरते रहे।
तुमने सदाशयता दिखाई,निर्दयता झेलते रहे।
पर,तुम क्रोध नहीं करते।
कर्ण शिक्षा के लिए भटकता रहा।
गुरू से श्राप पाता रहा।
पर,तुमने क्रोध नहीं किया।
क्यों तुम क्रोध नहीं करते।
तुम्हारा क्रोध नहीं करना ईश्वरपना नहीं है।
तुम्हारा क्रोध नहीं करना बुद्धपना नहीं है।
फिर तुम क्रोध क्यों नहीं करते।
करो तुम क्रोध ये तुम्हें रास्ता देगा।
तुम्हें जीवन से वास्ता देगा।
————————————-15-9-24