तुम कहो उम्र दरकिनार कर जाएं
इतना भी नहीं अफ़सोस, आशिक़ी का हमें,
कि तुम चाहो, और हम इश्क़ से मुक़र जाएं।
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उम्र ढलती रही, लेकिन दिल जवां होता रहा,
तुम कहो तो, उम्र को भी दरकिनार कर जाएं।
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शोला-बदन तुम, दिल कूचा-कूचा दहक रहा है,
कड़कड़ाती जनवरी, तुमसे दूर भी किधर जाएं।
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सुबह ख़्वाब बुनता हूँ, शाम ज़िद छोड़ देता हूँ,
ऐसा भी नहीं कि, हम किसी मोड़ पे ठहर जाएं।
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पाप-पुण्य, जो भी हो तुम्हारी कुर्बत का असर,
हो वस्ल तुम्हारा, हम भी दरिया पार तर जाएं।