तुम कहाँ चल दिए
तुम कहाँ चल दिए
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अरे रूको,जरा सुनो
तुम कहाँ चल दिए
लगता है दल बदल लिए
इतनी जल्दी तो भई
हवा भी रुख नहीं बदलती
जितनी जल्दी जल्दी तुमने
स्थान और सोपान बदल लिए
स्वभाव और मिजाज
अब पहले जैसे है कहाँ
मस्तक पर चढी त्यौरियां
ये स्पष्ट और साफ बताती है
तुमने तो अब ओ जालिम
बड़ी सफाई और चतुराई से
मंजिलें और रास्ते बदल लिए
क्या हासिल करना है
क्या हासिल कर लिया
क्या हासिल तुम करोगे
शायद फांसले जो पास थे
हाशिये पर तुमने रख कर
दरमियाँ हमारे-तुम्हारे
हैं और अधिक बढ़ लिए
शायद तुमने अल्फाज जिंदगी के
हैं हम से कुछ ज्यादा पढ़ लिए
इसलिए तुम आगे बढ़ लिए
आगे जब तुम थे बढ़ रहे
सीढियां थे तुम चढ़ रहे
हम भी थे आसपास खड़े
देख रहज थे तुम्हें, खड़े खड़े
कर के हमें दरकिनार
बिना ,देखे,बोले-सुने बिना
वहीं के वहीं छोड़कर
दिल मासूम तोड़ कर
अकेला मायूस तुम छोड़कर
सुखविंद्र थे तुम चल दिए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)