कब सुधरोगे?
मायके से तुम लौटी एक रोज
तो कुछ देर बाद
चाय पीकर
जब जज्बात थोड़े सहज हुए,
तुम्हारी खोजी नज़रों ने अपने क्षेत्र
का सरसरी तौर पर
जायजा लेना शुरू कर दिया।
मेरी छुटपुट गलतियां
सहमी सी फिर रही थी।
तुम्हारा रंग बदलता देख
उन्होंने मेरी ओर कातर दृष्टि से देखना शुरू
कर दिया।
मैं उन्हें आश्वस्त करके
तुम्हारे पीछे पीछे हो लिया
किचन, सिंक, फ्रिज व बिस्तर
सब मेरी शिकायतों की
फेहरिस्त लिए खड़े दिखे।
इसके पहले कि तुम
बाथरूम की ओर
बढ़ती,
मैंने मौके की नजाकत को समझते
हुए
तुम्हें अपनी अलमारी को
खोलने को कहा।
जहाँ एक नयी साड़ी
तुम्हारी राह देख रही थी।
तुम्हारे चेहरे की सख्ती
नर्म पड़ कर
हल्की मुस्कुराहट
की ओर बढ़ रही थी।
मामला अब नियंत्रण
मे था।
इस बार सिर्फ,
“कब सुधरोगे”?
बोलकर,
तुम घर की चीज़ें
सहेजने में व्यस्त
हो गई।