तुम और मैं****2
इस कोने से
उस कोने तक
मेरे वजूद पर छाए
तुम, आकाश सदृश….
और मैं ….
मैं धरा सी
तुमको तकती दूर से…
देखती वहां दूर
क्षितिज पर
अपना मिलन…
अनुपम और
अलौकिक……
इस कोने से
उस कोने तक
मेरे वजूद पर छाए
तुम, आकाश सदृश….
और मैं ….
मैं धरा सी
तुमको तकती दूर से…
देखती वहां दूर
क्षितिज पर
अपना मिलन…
अनुपम और
अलौकिक……