तुम और चाय
****** तुम और चाय ******
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तुम गरम चाय की प्याली सी
थिरकती हो खाली थाली सी
शीत लबों को उष्मा मिल जाए
तन मन को मिलती ख्याली सी
शीतल प्रचण्ड हवा के झोंकों से
ठंड से करती तुम रखवाली सी
बात करने का मिले बहाना सा
चाय पीती हुई लगे मतवाली सी
प्रेम शैली की है यह सुन्दर अदा
महकते उपवन की हो माली सी
चाय प्याली में रहती है यूँ की यूँ
सौगातें मिलन की है संभाली सी
मनसीरत बिगड़ते हैं समीकरण
चाय की प्याली लगती गाली सी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)