तुम और चाँद एक जैसे हो
मेरी किस्मत, तेरी हकीकत एक साँझ सी लगती है
तेरी सिरत, तेरी फितरत उस चाँद सी मिलती है
मेरी फजीहत, तेरी मिनन्त् हर रोज छलती है
तेरी नसीहत, तेरी मसुमियत उस चाँद सी दिखती है
कभी खुद अधूरा, कभी काले बदलो का ओट पुरा
ऐसे निकलती है।
क्योकि मैं फ़कीरा, पूर्ण अधिरा
जानु एक रोज़ तु पूनम में बिखरती है।
आसमा का फूल तु रात में खिलती है
चादँनी सी खुशबु निगाहों में बरसती है
गुम हुयी यू अचानक कहाँ
क्या बादलों में छुप कर हँसती है।
जब हमने सुना था तुम्है
बार बार कानों से फिसलती है
तेरी रौनक है, ऐसी की तु नहीं
तेरी कहानी कोई जलती है।
तु छिपा राज कोई
कोई रहस्य सी गढ़ती है।
मेरे मन का सुगबुगहात
कोई लता सी बढ़ती है।
तु लगे एक पूरी कुदरत
तु हर किसी में जीती है।