तुम अपना भी जरा ढंग देखो
तुम अपना भी जरा ढंग देखो
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तुम अपना भी जरा ढंग देखो,
कोई भी ना खड़ा संग देखो।
यूँ मौसम सा अजब यार मेरा,
मुख पर बदले कई रंग देखो।
गैरों को भी परख देख हारे,
खुद ही खुद से रहे तंग देखो।
शिद्द्त से था जिसे खूब चाहा,
ढलता यौवन नशा भंग देखो।
मनसीरत ने जहाँ प्यार खोया,
क्यों अपनों से हुई जंग देखो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल(