तुम अगर आँखों का मंजर देख लो
तुम अगर आँखों का मंजर देख लो
दर्द का उसके समुन्दर देख लो
यूँ भरोसा मुझपे गर होता नहीं
मुझको बेशक़ आज़माकर देख लो
गर शिकायत या कोई शक़ है तुम्हें
प्यार की कसमें ख़िलाकर देख लो
प्यार में सौदा कभी होता नहीं
तुम कोई बोली लगाकर देख लो
जो मेरे दिल में चुभा है इस क़दर
बेवफ़ाई का वो खंज़र देख लो
ये किसी को मात देता जीत या
क्या ख़बर क्या है मुक़द्दर देख लो
ज़िन्दगी हर दौर में सस्ती रही
क़ातिलों को दाम देकर देख लो
सर के ऊपर छत बना है आसमाँ
है ज़मीं ‘आनन्द’ बिस्तर देख लो
– डॉ आनन्द किशोर