तुम्हें ना भूल पाऊँगी, मधुर अहसास रक्खूँगी।
तुम्हें ना भूल पाऊँगी, मधुर अहसास रक्खूँगी।
छुपाकर दूर इस जग से, रिदय के पास रक्खूँगी ।
लगी लौ नेह की तुमसे, बुझेगी क्या ज़माने से,
घुमड़ घन बन चले आना, नज़र में प्यास रक्खूँगी।
© -सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद