तुम्हें कब ग़ैर समझा है,
तुम्हें कब ग़ैर समझा है,
हमेशा थे तुम्हारे संग
कभी देखा नहीं तुमने,
हमारी ही वफ़ा का रंग
दिखी ना सादगी मेरी,
दिखी बस दिल्लगी तुमको
यही था इश्क़ का लहजा,
यही है यार मेरा ढंग
महावीर उत्तरांचली