*तुम्हारे सवालों में*
उलझ के रह गयी जिंदगी अपनी तुम्हारे सवालों में।
यार सब तरफ बो सी रखीं हैं फसादें,हमारे खयालों में।।
दिखाया है कोई करिश्मा अब तक,ढंग भरा तुमने
दौड़ें जिसमें भरोसे की लहरें ,बूढ़ों में नोनिहालों में।।
नफरत ऐं खड़ी दिखती हैं जिधर चाहे देख लीजिए
जल रहा है इंसान हर तरफ,सुलगती हुई मशालों में।।
घर की दहलीज़ से निकलो कांपने लगता है कलेजा
ख़ुदी दिखतीं हैं कबरें सी, फ़ंसे दिखते हैं हलालों में।।
मयस्सर हैं तुम्हें आसमान में बादलों की सैर करना
मग़र हमें ना फ़ँसाइये जनाव ,महज उन बबालों में ।।
तुम कितने ही घिनौने करम कर लो,है गलत क्या ?
हमने सुन भी लिया ‘साहब’ कहीं मिटेंगे हवालों में ।।