तुम्हारे रुख़सार यूँ दमकते
ग़ज़ल
तुम्हारे रुख़सार यूँ दमकते
गुलों पे आया शबाब जैसे
लबों पे सुर्ख़ी यूँ लग रही है
खिला हो ताज़ा गुलाब जैसे
इन्हें न समझो कोई शराबी,
नज़र मिली तो बहक गये है
तुम्हारी आँखें हैं जाम कोई,
भरी हो इनमें शराब जैसे
फ़ज़ा में सरगम घुली हुई है,
तुम्हारी बातों में है तरन्नुम
खनक रही है तुम्हारी पायल
बजा हो कोई रबाब जैसे
तुम्हारा एहसास पास दिल के,
मैं यूँ तसव्वुर में खो गया हूँ
उभरता नज़रों में अक्स ऐसे,
कि सहरा में हो सराब जैसे
बदलते रहते हैं करवटें हम
‘अनीस’ कैसे कटेंगी रातें
बिछड़ के हम जी रहे हैं ऐसे
मिला हमें हो अज़ाब जैसे
– अनीस शाह ‘अनीस ‘