तुम्हारी ख़ामोशी मुझे अच्छी नहीं लगती
तुम्हारी ख़ामोशी मुझे अच्छी नहीं लगती
क्यूं मायूस बनकर जिन्दगी गुजारते हो
दिल को खुश रखों, रखो हर पल पल यूं ही
जैसे की पवन का झोका ,आता है कहीं से !!
कठिन समां तो गुजर ही जाता है
वो रुकने के लिए नहीं कभी आता है
रुकता तो वो बुझ दिल है, मेरे यार
जिस को जिन्दगी को जीना नहीं आता है !!
तस्वीर का वो रुख सब को अच्छा लगता है
जिस में तेरी काया का दर्शन हो जाता है
कभी उस भाग के भी दर्शन किया करो
जिस पर जालों का पहरा बना रहता है !!
जीवन सुख और दुख का ही तो नाम है
अगर सुख भोगा तो, एहसास कैसे हो दुःख का
यह चला चली का रेला है , मेरे यारा
एक जायेगा, तभी तो दूसरा आएगा उस के बाद !!
न घबरा , न परेशान कर अपने मन हो तून
यह पल भी यूं ही यहाँ कट जायेगा
अपनी ख़ामोशी को तोड़ “अजीत” कहता है
मेरे दोस्त, इस रात के बाद फिर सवेरा आ जायेगा !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ