तुम्हारी बातों में……
यूँ तो कोमल सुमधुरता का है वास तुम्हारी बातों में,
लेकिन जब बोलूँ तुमसे,तो दिखता है,अविश्वास तुम्हारी बातों में।
कोकिल भी सुन शरमा जाये, जिस मधुर मोहिनी वाणी को,
मिलता मुझको निज ही वैसा अहसास तुम्हारी बातों में।
तुम बोलो ही तो छन्द बनेंं,और उनमें रस मुस्कान भरे,
होता हो जैसे नौ रस का संचार तुम्हारी बातों में।
है जुल्फ घटा काली तेरी,मुख चमक रहा दमयन्ती सा,
इस बे-मौसम की बारिश का है सार तुम्हारी बातों में।
तुम ही वह जिस पर अपनी, मैं जान निछावर करता हूँ,
और फिर जी जाता हूँ पाकर रस धार तुम्हारी बातों में।
जब प्रेम विवश होकर तुमसे,कुछ प्यार भरा कहना चाहूँ,
चुप हो जाता हूँ पाकर मैं इंकार तुम्हारी बातों में।
सुनकर ही जिसको हिल जाते,जो तुम्हें गलत कहने वाले,
जो उन्हें मात दे जाती वो हुंकार तुम्हारी बातों में।
आशुतोष पाण्डेय
बहराइच, उत्तर प्रदेश