तुम्हारी फ़िक्र सच्ची हो…
तुम्हारी फ़िक्र सच्ची हो अगर नाराजग़ी झूठी।
निभाते हो तभी रिश्ते दिखाते सादगी ड्यूटी।।
सभी का दर्द समझे जो किये बिन भेद की साजिश।
सदा महके बड़ा सुख दे उसी के प्रेम की मालिश।
बनो मानव चलाओ ख़ूब चाहत प्रेम की स्कूटी।
निभाते हो तभी रिश्ते दिखाते सादगी ड्यूटी।।
किसी का चाँद कहलाए किसी को दाग दे जाए।
मगर इंसान इक ही है अलग सबको नज़र आए।
भरा जल आपने जैसा चले वैसी लगी ट्यूटी।
निभाते हो तभी रिश्ते दिखाते सादगी ड्यूटी।।
किसी का कर्म अच्छा है मगर तक़दीर ग़म देती।
किसी को कम नहीं ‘प्रीतम’ सभी को दोस्त सम देती।
निराशा भूल उल्फ़त से खिले क़िस्मत यहाँ फूटी।
निभाते हो तभी रिश्ते दिखाते सादगी ड्यूटी।।
तुम्हारी फ़िक्र सच्ची हो अगर नाराजग़ी झूठी।
निभाते हो तभी रिश्ते दिखाते सादगी ड्यूटी।।
आर. एस. ‘प्रीतम’