‘तुम्हारी तरह’
न जाने क्यों ?कोई अज़नबी
अपना लगने लगता है,
तुम्हारी तरह।
न देखा न जाना,
फिर भी याद आ जाना,
कभी न कभी’
और दिल का उसे तलाशना ।
तुम्हारी तरह उसे ,
न जाने क्यों?
क्या तुम्हें भी ऐसा
एहसास होता है कभी?
तो बताना मुझे,
मेरी तरह …