तुम्हारी ग़ैर मौज़ूदगी में..
तुम्हारी ग़ैर मौज़ूदगी..
जला देती है..
रोटी का सोंधापन..
बढ़ा देती है
मन का सूनापन..
कुंठित हो जाते हैं
सवेरे के.. अनमने काम..
तुम्हारी ग़ैर मौज़ूदगी में
नहीं उलझते है..
रेशमी पैरहन पर सिमटे
लजीली कढ़ाई के
सिहरते पायदान!
स्वरचित
रश्मि लहर