तुम्हारी आँखें।
तुम्हारी आँखें।
वो तेरी आँखें…,
कुछ कह रही थीं मुझसे।
सुनकर आँखों की बातें,
न कुछ मैंने कहा तुमसे।
कहती भी क्या मैं?
हर अहसास,
कहा नहीं जाता।
बोलना चाहकर भी बिना
ख़ामोशी रहा नहीं जाता
लेकिन हाँ ये भी सही,
बोलना है जरूरी।
चाहे आँखें ही बोले,
भले जुबां से हो दूरी।
तुम्हारी आँखें बार-बार,
कुछ बयान कर जाती है।
करके मुझे बेचैन और बेचैन जान कर जातीहै
तुम्हारीआँखें बोलती,
बोलने का भरम कर जाती है।
मैं कुछ कह नहीं पाती,
मुझे इतनी शर्म आती है।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
सर्वाधिकर सुरक्षित
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78