तुम्हारा शीर्षक
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तुम्हारे आसमन पर
अन्र्तवेदना से
आत्र्तनाद करता हुआ सूरज।
तुम
‘रामलीला’ के किसी आयोजना में
आपादमस्तक संलग्न।
तुम्हारे महाकाव्य पर
अन्तश्चेतान में सिर धुनता युग।
तुम शान्तिवन के विशाल समारोह में
करते हुए व्याख्या आमरण।
हो रहा
सूरज शेष
और य्ुुाुग स्तब्ध।
आसमान लाल
और महाकाव्य निःशब्द।
आयोजना आलोचित
और समारोह आवेशित।
निरीह टुकड़ों में बाँटकर
तुम्हें
लाया है तुम्हारा अस्तित्व।
प्रश्न सा उठ खडां हुआ
आज तुम्हारे पराक्रम का सत्व।
सूत्र की व्याख्या
युग को सौंप दो।
राम के पहचान को
युगपुरूष कृष्ण को सौंप दो।
वध की वेदी से
अपना सूरज उठाओ।
हवन की आग से
अपना युग बचाओ।
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