तुम्हारा प्रेम
तुम,
तुम्हारा प्रेम,
कितना कम – कितना ज्यादा,
लगाया उगंलियों पर हिसाब,
अंकों में गई उलझ,
यादों में गई सुलझ,
नहीं मिला मुझे कोई भी हल,
कुछ भी न समझ आया,
बस इतना ही ये दिल जान पाया,
मैं हो गई शून्य,
जब से तुम्हें दिल में बसाया,
तो फिर,
क्या खोया — क्या पाया ???