तुम्हारा साथ
प्रिये, तुम आ जाओ।
बन बसंत,पुष्पित तन-मन
यौवन-रस बरसा जाओ,
प्रिये, तुम आ जाओ।
कुछ बंदिशें,कुछ साजिशें
कुछ वक्त की नुमाइशें,
हम रूक गए उस मोड़ पे
कुछ छाप अपनी छोड़ के।
कभी सत्य ने पर्दा किया
कभी डोर छोड़ती आस ने,
आँखों का जोर भी थम गया
दिल की उदासी थाम के।
अब क्या करूँ उस योग का
बिरह, विमुख संयोग का,
उस पर्व का, सौगंध का
उस आत्म -बिसरित मौन का।
मैं हूँ वहीं उस मोड़ पर
राह थामे व्योम पर,
सतरंगी बन फिर छा जाओ
निर्झर बसंती -राग बन।
पावस फुहार
बन ओस बूंद,
प्रेम -अगन बरसा जाओ।
प्रिये, तुम आ जाओ।
*******सुप्रभात दोस्तों *********