तुमसे बिछड़ के दिल को ठिकाना नहीं मिला
तुमसे बिछड़ के दिल को ठिकाना नहीं मिला
फिर प्यार का हसीं वो ज़माना नहीं मिला
यूँ ज़िन्दगी में लोग तो मिलते रहे बहुत
पागल बना दे ऐसा दिवाना नहीं मिला
सपने जो हमने देखे अधूरे ही रह गए
वो अपनी चाहतों का ख़ज़ाना नहीं मिला
तुमसे मिलन की चाह तो दिल में बनी रही
मिलने का फिर भी कोई बहाना नहीं मिला
वैसे हर एक साज़ रहा ज़िन्दगी में पर
मदहोश कर दे ऐसा तराना नहीं मिला
परवाज़ ही हुनर को नहीं मिल सकी कभी
उस को तराश दे वो घराना नहीं मिला
सब कोशिशों के बाद भी एहसास है यही
हमको किसी के दिल में ठिकाना नहीं मिला
हम तुम जहाँ मिले थे जगह वो वहीं मिली
गुज़रा हुआ वो वक़्त पुराना नहीं मिला
थे साथ हम तो ‘अर्चना’ मौसम भी था हसीन
तुम बिन कभी सफ़र वो सुहाना नहीं मिला
डॉ अर्चना गुप्ता