तुमने पुकार कर
देखा नही कभी मुझे तुमने पुकार कर
मैं लौटता चढ़े हुए दरिया को पार कर
है कैसी आग ये लगी उठता रहा धुआँ
जाए कहीं नहीं मुझे ये खाकसार कर
फूलों में हो बसर या मिले खार ही मुझे
लो मैं चला सनम तेरी दुनियाँ सँवार कर
कुछ भी नही है मेरा यादों के ही साये हैं
सूरत सनम तेरी चले दिल मे उतार कर
बहते रहे हैं अश्क़ सदा आँख से मेरे
यूँ छोड़ वो गया मुझे क्यों अश्कवार कर
– ‘अश्क़’